शुक्रवार, 28 मई 2021

हिंदी पत्रकारिता दिवस - 30 मई



मीडिया : सरोकार या कारोबार

        



          हिंदी पत्रकारिता दिवस हर वर्ष 30 मई को मनाया जाता है। 30 मई 1826 को पंडित जुगल किशोर जी ने कलकत्ता से हिंदी का पहला समाचार पत्र निकाला था। यह हिंदी का पहला साप्ताहिक समाचार पत्र था। पत्रकारिता की शुरूआत जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु हुआ था, उसका स्वरूप धीरे धीरे विकृत होता जा रहा है। आज हम  पत्रकारिता के विविध अंगों में से मीडिया के स्वरूप व उसकी भूमिका की चर्चा करेंगे।


    " पत्रकारिता का एकमात्र लक्ष्य सेवा होना चाहिए। अखबारी प्रेस एक बड़ी ताकत है। लेकिन जैसे अनियंत्रित जल प्रवाह में गांव के गांव डूब जाते हैं,फसलें बर्बाद हो जाती हैं,उसी तरह अनियंत्रित लेखनी सेवा करने की बजाय विध्वंस लाने का काम करती है। "- महात्मा गॉंधी



        मीडिया पत्रकारिता का एक सशक्त माध्यम है, जिसका कार्य लोगों तक तथ्यपूर्ण सूचना पहुँचना है। पत्रकारिता  भारतीय समाज का अभिन्न अंग है। मीडिया इसी का हिस्सा होने के कारण संविधान के चौथे स्तंभ के रूप में अपनी  प्रसिद्धि बनाये हुए है। सरकार के कार्यो का सही लेखा-जोखा जनता तक पहुँचना ,लोगों में नई चेतना का संचार करना व सही मार्गदर्शन करना आदि मीडिया के कर्तव्यों के अंतर्गत आता है। परंतु आज मीडिया अपनी भूमिका का निर्वहन करने में विफल रही  है , उसके माध्यम से लोगों पर नकारात्मक प्रभाव फैल रहा है। देश में बढ़ते दंगे को रोकने के बजाय, वह उसे धर्म और राजनीति के तराजू पर तोलने लगी है। इससे समाज में मीडिया का जो रूप सामने आता है वह पथ प्रदर्शक का तो नहीं लगता है।

          

           किसी भी घटना को सबसे पहले प्रस्तुत करने की होड़ में  वह तथ्यों को पीछे छोड़ कल्पना शक्ति के आधार पर निर्णय ले लेती है। और जनता की नज़रों में भी उसे दोषी ठहरा दिया जाता है। वह स्वयं न्यायधीश के पद पर आसीन हो जाती है। अपने कर्तव्यों के प्रति मीडिया या तो सजग नहीं है, या फिर  वह अपने को श्रेष्ठ समझने लगी है। आज मीडिया को समाज की परिस्थितियों से सरोकार नही है,उसे सरोकार है टीआरपी से, प्रसिद्धि से । आज न्यूज़ नहीं न्यूज़ प्रोग्रामस् दिखाये जा रहे है। दिन भर की बहस में क्या नतीजा निकलता है? 

       

              आधुनिक  मिडिया  पीत पत्रकारिता के उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ती हुई नज़र आती है। सनसनी फैलाने वाले खबरों को तवज्जो देना, सत्तारूढ़ दल का महिमामंडन करना घटनाओं को द्विअर्थी रूप देना आदि अनुचित कार्य मीडिया द्वारा किये जा रहे है। यहाँ किसी मीडिया विशेष या सत्ता विशेष की बात नहीं की जा रही है। मीडिया का कार्य समाज में संतुलन व व्यवस्था बनाना है। लोगों पर सकरात्मक प्रभाव डालना है। सरकार के कार्यों का मूल्यांकन कर जनता को जागरूक करना है।लोगों को दिग्भ्रमित करना मीडिया का कार्य नही है। दुष्यंत कुमार की पंक्तियों द्वारा मैं मीडिया के प्रति अपने विचारों का मंतव्य स्पष्ट करना चाहूँगी - 

 

"सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही

सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही 

हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। "

                                   -  ज्योति कुमारी 

बुधवार, 26 मई 2021

ज़िन्दगी : एक पहेली






हैं ज़िन्दगी ये मेरी, एक उलझी पहेली

थोड़े से पल खुशी के, क्यूं मेरी ज़िन्दगी में,

कोई सपना हैं अधूरा, कोई बात अनकही सी

हैं ज़िन्दगी ये मेरी, एक उलझी पहेली।



हर एक की तरह ही, था एक सपना दिल में

पा लूं वो सारी खुशियां, जो सिर्फ थी ख्वाबों में,

पर रह गई वो बातें, क्यूं आज भी अधूरी

हैं ज़िन्दगी ये मेरी एक उलझी पहेली।



अब ना हैं कोई शिकवा, ना आसरा किसी का

अब राह वो ढूंढेंगे, जो सिर्फ हो खुशी का

जीना ही है तो अब हम, जीयेंगे इस कला से

हैं ज़िन्दगी ये मेरी , एक सुलझी पहेली।


                                                                   -                                                   - ज्योति कुमारी

कुछ बातें हैं ....




 

कुछ बातें है, जिन्हें मैं सोचती हूं …

 

नई राह मंजिल की, मैं ढूँढती हूं।

 

रुकी हुई इस ज़िन्दगी में, धार नई खोजती हूं,

 

हर कामयाबी को मैं बस, अपना बनाना चाहती हूं ।

 

कुछ बातें है जिन्हें मैं सोचती हूं …



 



चाहती हूं हर शौक़ पूरे हो मेरे,


पर ना जाने क्यूं,


खुद को खुद से हारते मैं देखती हूं ।


शायद अपनी, काबिलियत को आंकती हूं ,


या सबके के तानों से, मैं भागती हूं ।

               

               कुछ बातें है जिन्हें मैं सोचती हूं …



 

बादलों के गर्जन में, बारिश की बूंदों में,

 

ना जाने कैसा पाश है।

 

साथ अपनों का हर पल, पर फिर भी मन उदास हैं।

 

कुछ अधूरी ख्वाहिश, जो पूरी हो ना पाई,

 

उन ख्वाहिशों को मैं आज जीना चाहती हूं।

 

कुछ बातें है जिन्हें मैं सोचती हूं ….


 

-ज्योति कुमारी


  वैधव्य का शाप  हाँ मैंने एक स्त्री को विधवा होते देखा  अभी कल की बात थी ,  जब मैंने उसकी हँसी बगल वाले घर के आँगन में सुनी थी  पर आज वो हँ...