गुरुवार, 26 अगस्त 2021

 वैधव्य का शाप 


हाँ मैंने एक स्त्री को विधवा होते देखा 
अभी कल की बात थी , 
जब मैंने उसकी हँसी बगल वाले घर के आँगन में सुनी थी 
पर आज वो हँसी आँसुओं में बदलते देखकर , मैं सहम गयी
सच कहूँ तो मैंने एक लड़की को विधवा होते देखा। 

भविष्य के सपने लिए वो इस घर में आयी थी, थोड़ी शर्मीली सी थी, 
चेहरे की चमक उसकी मासुमियत बतलाती थी। 
उसकी बातों में ,मैं किसी रहस्यलोक में चली जाती थी, 
उसके जैसा कोई मेरा अपना होगा, यह हमेशा सोचती रहती थी
पर कैसे कहूँ कि मैंने उसे विधवा होते देखा। 

पर आज जब उसके वैधव्य संस्कार को होते देखा,
 तो समाज का असली चेहरा सामने आया 
कल तक जिसके रूप लावण्य पर सब मोहित थे 
आज उसके स्पर्श, उसके साएं से भागते हैं । 
सुहागिनें उसके संस्कार में शामिल नहीं हो सकती,
 कुमारी उसका मुख नहीं देख सकती ,
 क्या यहीं है आदर्श समाज ??? 
ऐसे समाज में सच कहूँ तो, 
 मैंने एक लड़की को विधवा होते देखा। 

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