कुछ बातें है, जिन्हें मैं सोचती हूं …
नई राह मंजिल की, मैं ढूँढती हूं।
रुकी हुई इस ज़िन्दगी में, धार नई खोजती हूं,
हर कामयाबी को मैं बस, अपना बनाना चाहती हूं ।
कुछ बातें है जिन्हें मैं सोचती हूं …
चाहती हूं हर शौक़ पूरे हो मेरे,
पर ना जाने क्यूं,
खुद को खुद से हारते मैं देखती हूं ।
शायद अपनी, काबिलियत को आंकती हूं ,
या सबके के तानों से, मैं भागती हूं ।
कुछ बातें है जिन्हें मैं सोचती हूं …
बादलों के गर्जन में, बारिश की बूंदों में,
ना जाने कैसा पाश है।
साथ अपनों का हर पल, पर फिर भी मन उदास हैं।
कुछ अधूरी ख्वाहिश, जो पूरी हो ना पाई,
उन ख्वाहिशों को मैं आज जीना चाहती हूं।
कुछ बातें है जिन्हें मैं सोचती हूं ….
-ज्योति कुमारी
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